समाज
समाज
सब का एक ही मानना है,
की सब कुछ हमको सहना है,
फिर भी हमें कुछ नहीं कहना है,
क्यों की
हमें इसी समाज मे रहना है.
इस समाज मे यह सब निर्धारित है,
हमें क्या पहनना है,
हमें क्या पढ़ना है,
हमें कब किससे और
कैसे मिलना और बात करना है,
इन सबका हमें पालन करना है,
क्यों की
हमें इसी समाज मे रहना है.
जब इस तरह हमें जुल्म सहना है,
हर ग़लती को अनदेखा करना है,
ऐसा जीना भी कोई जीना है,
समाज तो सब ने बनाया है,
पर बस कुछ लोगो ने इसे चलाया है,
इस समाज को हमें बदलना है,
सबको जागृत करना है,
जिसकी स्वेच्छा उसे वापिस करना है,
फिर हमें कहना है,
हमें इसी समाज मे रहना है.
