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Abhijeet Hazari

Others

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Abhijeet Hazari

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बचपन

बचपन

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नहीं थी कोई खास मन्नत,

क्योंकी हर पल तो था जैसे जन्नत,  

हर खुशी तो थी आसानी से मिलती,

क्योंकी पुरे घर में थी मेरी चलती, 

नज़र अंदाज़ भी हो जाती थी मेरी तोड़ी गलती,

क्यों गुज़र गए ऐसे दिन इतने जल्दी,

जिसमे थी हर खुशी संपन्न,

ऐसा ही तो था मेरा बचपन...


नहीं थी कोई फिकर,

नहीं चढ़ना था कोई शिखर,

बस खुशी का ही था जीकर,

बस मुझे बनना था ज़िम्मेदार,

और ख़तम करना था अपना खाना लगातार,

सिर्फ चाहता हूँ वहीं सुख हर बार, 

जिसमे थी हर खुशी संपन्न,

ऐसा ही तो था मेरा बचपन...


अब जब किसी बच्चे को देखता हूँ, 

तो अपने आप में मुस्कुराता हूँ, 

खुद से यही कहता हूँ,  

वो भी तो ऐसे ही दिन थे, 

पर वो क्यों दुख के बिन थे, 

फिर जवाब देता है मेरा मन, 

जिसमे थी हर खुशी संपन्न,

ऐसा ही तो था तेरा बचपन...


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