समाज की कड़वी सच्चाई
समाज की कड़वी सच्चाई
कहने को कहते हैं बदल रहा है समाज
बेटे और बेटी के भेद से उबर रहा है समाज,
बेटी को भी आज पढ़ा रहा है समाज
लेकिन अफ़सोस अपनी सोच को नहीं बढ़ा रहा है समाज,
बेटी को अधिकारों की दिशा दिखा रहा है समाज
लेकिन बेटों को उनकी इज्जत करना नहीं सिखा रहा है समाज,
एक ओर बेटी को सपनों के झूले में झुला रहा है समाज
वही दूसरी ओर अपने ही अत्याचारों से बेटी को रुला रहा है समाज।
और कहने को कहते है बदल रहा है समाज
बेटे और बेटी के भेद से उबर रहा है समाज,
आज भी सिर्फ बेटी पर ही क्यों शक कर रहा है समाज
बेटे के चरित्र पर क्यों नहीं प्रश्न कर रहा है समाज,
रिश्तों की डोरी से बेटों को क्यों नहीं नचा रहा है समाज
दुनिया के बंधनों से बेटी को क्यों नहीं बचा रहा है समाज,
और कहने को कहते है बदल रहा है समाज
बेटे और बेटी के भेद से उबर रहा है समाज,
क्यों उम्मीद आज भी बस बेटों से रखता है समाज
क्यों कुछ अच्छा करने पर बेटी को बेटा कहता है समाज?