सितमगर समझता है
सितमगर समझता है
मेरे सभी हालातों को वो बेहतर समझता है।
यूं ही नहीं मेरे घर को अपना घर समझता है।
वो इश्क़, मोहब्ब्त, वफ़ा की बातें नहीं समझा,
उससे अच्छा ये सब एक कबूतर समझता है।
किस किस पे कितना सितम करना बाकी है,
ये भी तो बखूबी वो सितमगर समझता है।
इस शब–ए–तीरगी को कैसे मिटाना है,
ये सहर का उगता हुआ लश्कर समझता है।
जाहिर करे वो भी मोहब्ब्त को कभी हमसे,
इस बात को भी यार वो हँसकर समझता है।
