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AKIB JAVED

Abstract

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AKIB JAVED

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शुक्रिया

शुक्रिया

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दिल के नक़ाब को यूं हटाने का शुक्रिया

अपना बना के गैर बनाने का शुक्रिया


जो आशियाँ बनाये खुले आसमान को

भूखे को आज खाना खिलाने का शुक्रिया


थे कल तलक अज़ीज़ अरे! मेरे यार जो

अब गलतियों को उनके गिनाने का शुक्रिया


मशरूफ़ हो गए दुनिया में यूं अपनी तुम

आवाज दे के हमको बुलाने का शुक्रिया


बीवी की बात माननी पड़ती है शौहर को

खाविंद को गुलाम बनाने का शुक्रिया


यूं पास आके अपने गले से लगाके तुम

मेरे भी दुःख दर्द चुराने का शुक्रिया


कुछ ऐसे वैसे करके गुज़र जायेगे ये दिन

अपने नज़र से कुछ को गिराने का शुक्रिया


ले आयी कुछ न कुछ हमेशा साथ ज़िंदगी

मुझको नए रिवाज सिखाने का शुक्रिया


डुबा हुआ है जाम में सब रोज से यहाँ

'आकिब' को यूं नज़र से पिलाने का शुक्रिया।


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