शिक्षक और किसान
शिक्षक और किसान


एक किसान के हिस्से बीजों को रोपना
और सिंचित करना आया,
एक कुम्हार के हिस्से कच्ची मिट्टी को
बटोरना और घड़े गढ़ना आया,
एक खाती के हिस्से लकड़ियों को काटना
और फर्नीचर बनाना आया,
एक मजदूर के हिस्से अपनी श्रम शक्ति को
बेचकर रोजगार प्राप्त करना आया,
एक लेखक के हिस्से लिखना और बस लिखना आया,
लेकिन एक शिक्षक के हिस्से आया
ज्ञान के बीज को सिंचित कर उसे
पोषित करना ठीक किसी किसान की भांति,
कच्चे ज्ञान के आटे को पका कर शिष्य रूपी रोटी में
बदलना ठीक किसी स्त्री की भांति,
कच्चे ज्ञान को बटोर कर तप्त अग्नि में परिपक्व
घड़े रूपी शिष्य में बदलना ठीक किसी कुम्हार की भांति,
अधूरे और अपरिपक्व ज्ञान को काट कर
एक पूर्ण और परिपक्व ज्ञान का सांचा तैयार करना
ठीक किसी खाती की भांति,
अपने शिष्य के दैदीप्यमान के बदले अंतरिक्ष की गोद जैसी
उपलब्धि का त्याग करना ठीक किसी मजदूर की भांति
और अंततः प्रतिरोध की जमीन पर मौन के बीज बोना
ठीक किसी लेखक और किसान की भांति।
क्योंकि "एक गुरु किसी शिष्य के लिए ठीक संस्कृत भाषा के
उस विसर्ग की भांति होता है जिसके बिना शिष्य और शब्द दोनों
निरर्थक की बेड़ियों में जकड़ जाते है।