शीर्षक -मेरी माँ
शीर्षक -मेरी माँ
ग़र ईश्वर मुझे नन्ही बेटियों की माँ,
होने का सुख नहीं देता।
तो आपके दुःख, आपके कष्टों का,
मुझे अहसास नहीं होता।।
पहली बार आपकी छत्रछाया में, मैं, माँ बनी।
आपको और अपनी बिटिया को देखकर,
आँसुओं की धार बही।।
"हो गया हैं सब ठीक अब क्यों रोती हो?"
"अनमोल हैं ये आँसू,
इनको व्यर्थ क्यों खोती हो?"
मैंने कहा-"माँ ये ख़ुशी के आँसू हैं,
ना की गम के।
महसूस कर आपके दर्द को,
आज नयनों में ये चमके।। "
खुद की सुंदरता को ताक पर रख,
अपनी कोख में मुझे शरण दी।
नौ महीने मेरी मौजूदगी को,
मेरी अठखेलियों को सहती रही।।
मुझे इस खूबसूरत संसार में लाने के लिए,
अथाह कष्ट अथाह प्रसव वेदना सही।
जी मचलाते घबराहट होते हुए भी,
प्रसन्नमुख होकर मुझसे बातें करती रही।।
कैसे आपने नौ महीने अपने ख़ून से सिंचकर।
तीन साल तक, अपना अमृततुल्य दूध पिलाकर।।
मेरी हर शैतानीयों को सहकर।
अपने आँचल की ठंडी छाँव देकर।।
कभी किस्से- कहानियाँ,
अन्नपूर्णा स्वरूपा मेरी माँ,
स्वादिष्ट भोजन पकाकर,
बातों -बातों में उलझा,
अपने हाथों से,
गरमागरम खिलाया।
मुझमें बचपना हैं तभी तक,
जब -तक आपका मेरे ऊपर
साया हैं।।
हर माँ के भाग्य में संतान होती हैं,
लेकिन हर संतान के भाग्य में,
माँ का सुख लिखा हुआ नहीं पाया हैं।
हम भाग्यशाली हैं,
हमारे पास सास से ससुराल,
और माँ से मायका हैं।
माँ हमारे जीवन का स्वाद,
व जायका हैं।।
मेरी हर कामयाबी पर,
मेरी आरती उतारकर।
जीवन जीने का हौसला दिया।
माँ के त्याग, और समर्पण को,
स्वयं परमात्मा ने सजदा किया।।