शीर्षक:अब मात्र
शीर्षक:अब मात्र
शायद वह ईंट पत्थर का
घर मात्र नहीं था
हर गर्मियों की छुट्टियों में
याद आता हैं वह घर जो
छूट गया हैं आप दोनों के जाने से
शायद अब कभी नही..?
अभी भी सामने से निकलती हूँ
कभी तो दिखता हैं सड़क से ही
मात्र ईंट पत्थर का बना वो घर
आपके रहने से जो स्वर्ग था
अब मात्र….
आस-पड़ोस भी शायद अब नही है
रिश्ते-नाते तो मानों मर ही गए थे
आपके जाने के बाद
बदलती ऋतुएं हैं सुना करती थी
पर रिश्तों को भी गिरगिट बनते देखा है
आपका मेरे आने पर खुश होना
अब मात्र….
पापा का अपनी तोंद पर लिटाकर सहलाना
आज भी आपकी बिटिया को
तदफ़ाता हैं छुट्टियों में
आज आप स्वप्न में आकर सुने मेरी सिसकियां
जिसे आप छोड़ आये है मेरे पास
पल पल साथ रहने को
अब मात्र….
न जाने क्या कुसूर था जो यह सब हुआ
कभी किसी बिटिया का घर न छूटे
बस यही प्रभु से मेरी दुआ
एक घर ही नहीं छुटा आप भी
मुँह मोड़ चल दिये छोड़ बिटिया को
अनाथ, बेसहारा, बेबस, लाचार।