शहीद की माँ
शहीद की माँ
डूबता ये सूरज चला,
माँ का यह प्यार भूलता चला।
दिन दिवस ये बीततें चलें,
जूगनू टिमा - टिमाकर कहने लगे,
गाँव की दीवाली भी लौटती चली।
माँ की आँखें आज भी रोती चली।
दिन वो याद आते गऐ,
लाल मेरा आज न लौटा।
चिट्टी उसकी फिर पलटती,
देखती कहती शायद।
होली में घर लौटना होगा,
होली भी अब लौट चली।
मन में व्याकुलता होती चली,
लाल फिर भी घर न लौटा।
मन को आज कैसे सुलझाऊं,
बहू को आज कैसे बतलाऊं।
बेटा आज भी न लौटा,
अब बहू को कैसे समझाऊं।
कैसें बहू को झूठी चिट्टी बतलाऊं,
अब तो मन भी पूछता है।
आखिर कब वह लौटेगा,
होली या दीवाली में।
या फिर न अब लौटेगा,
मन में चिंता बढ़ती गई।
तभी बिछड़ती नींद गई,
बहू पर जा नजर गिरी ।
तभी जा नज़र बहू पर टिकी,
लाल तो कब वतन पर शहीद हो चला।
