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Rahul Bhatt

Abstract

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Rahul Bhatt

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शहीद की माँ

शहीद की माँ

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डूबता ये सूरज चला,

माँ का यह प्यार भूलता चला।

दिन दिवस ये बीततें चलें,

जूगनू टिमा - टिमाकर कहने लगे,

गाँव की दीवाली भी लौटती चली।


माँ की आँखें आज भी रोती चली।

दिन वो याद आते गऐ,

लाल मेरा आज न लौटा।

चिट्टी उसकी फिर पलटती,

देखती कहती शायद।


होली में घर लौटना होगा,

होली भी अब लौट चली।

मन में व्याकुलता होती चली,

लाल फिर भी घर न लौटा।


मन को आज कैसे सुलझाऊं,

बहू को आज कैसे बतलाऊं।

बेटा आज भी न लौटा,

अब बहू को कैसे समझाऊं।


कैसें बहू को झूठी चिट्टी बतलाऊं,

अब तो मन भी पूछता है।

आखिर कब वह लौटेगा,

होली या दीवाली में।


या फिर न अब लौटेगा,

मन में चिंता बढ़ती गई।

तभी बिछड़ती नींद गई,

बहू पर जा नजर गिरी ।


तभी जा नज़र बहू पर टिकी,

लाल तो कब वतन पर शहीद हो चला। 


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