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Rahul Bhatt

Others

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Rahul Bhatt

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"लाचार जिदंगी में भूख"

"लाचार जिदंगी में भूख"

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अभी -अभी तो निशा हुई, 

  ये कैसे आज सुबह जल्दी हुई

सुन पंछी - परिंदों की चहचहाहट से,

   आज मुझे आज रोना आया

कल का ही दिन तो अभी न बीता,

   फिर ये कैसी सुबह हुई

अब किस -किस पर द्वेष दूं,

   ये तो प्रकृति का विधान है

जहाँ सुबह का पता न चलता है,

   चलो उठो, तुम छोड़ो इन बातों को

आ फिर घूमें तलाश रोटी की ,

    एक घर, एक गली से

गुजर - गुजर कर,

    अब भूख और बढ़ आई है

न मिलती रोटियों यह ,

   यह तो मिलती गालीयां

कैसी ये बेबस लाचारी है छाई ,

  जहाँ एक ही रोटी की तलाश में

इतने मील भटकते है,

  फिर भी रोटी न हमें मिल पाती

दूर-दूर तक भटकते रह गए,

   एक मुसाफिर बनकर

अचानक आँखों में चमक बढ़ उठी,

   देख आगे एक रोटी जा मिली

मन ही मन कहने लगा,

   बेसफलता न मिलती रोटी

दर-दर भटकना पड़ता है,

  चाहे रवि की तेज किरणें क्यों न हो

चाहे बरसता गगन क्यों न हो,

   फिर एक -एक आस कर -कर

   रोटी की चाह को पूर्ण करते हम ।

      


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