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Krishna Mishra

Abstract

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Krishna Mishra

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शब्द की जीत

शब्द की जीत

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इक शाम का जोर था

सन्नाटे का शोर था

मैं खड़ा इक ओर था

सामने खड़ी थी तू

हर शब्द से लड़ी थी तू

इक हर्फ़ पे अड़ी थी तू

वो हर्फ़ एक 'न' था

मेरे शब्द से बड़ा न था

जो सुनना मुझे न था

बेबाक हर्फ़ 'न' था

बेवफ़ा शब्द हां था

वो प्यार तब कहां था

जब शब्द-हर्फ़ की जंग थी

ज़बान मेरी तंग थी

पर मन में एक उमंग थी

उमंग इस बात की

कि आज तूने बात की

आखिर..

शब्द ने हर्फ़ को मात दी।

            


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