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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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सच की लड़ाई

सच की लड़ाई

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सच की आजकल बगावत हो रही है

झूठ को आजकल राहत हो रही है 

सच तो सदा ही कडुआ होता है

पर झूठ सदा ही मीठा होता है


सच छोड़, आजकल लोगो को

झूठ से बहुत मोहब्ब्त हो रही है

सच आजकल तन्हा रहता है

अंधेरे से वो बेचारा दबा रहता है


जब भी चराग़ जलता है

देखता है वो इधर-उधर

कहीं किसी अंधेरे की,उस पे

पड़ तो नहीं रही है नज़र


अंधेरे की आज़कल साखी,

कोहिनूर सी इज्जत हो रही है

सच की ख़िलाफ़त जहां होगी

ख़ुदा की वहां इबादत कैसे होगी


अरे ज़मानेवालो ज़रा सुधर जाओ

जीत अंत मे सत्य की जरूर होगी

सच मे ही ख़ुदा की रोशनी होगी

बजरंगबली से बेपनाह मोहब्ब्त करता हूं


शायद यही वजह है, सच बोला करता हूं

सँघर्ष बहुत भले मिलेगा मुझको

बारिश में भले रोना पड़ेगा मुझको

पर मेरी जिंदगी के मालिक


तेरी रहमत से मेरी नाव,

दरिया के उस पार हो रही है

एक तेरे पाक कलाम,सच बोलने से,

साखी की हार भी विजय हो रही है


नेकी और बदी की लड़ाई में

सच औऱ झूठ की लड़ाई में

जीत रोशनी की ही होगी

एक सूरज की रोशनी से,

अमावस की घनी रात्रि रो रही है।


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