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Krishna Khatri

Abstract

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Krishna Khatri

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सब तेरे जैसे होते !

सब तेरे जैसे होते !

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जब भी तुम आते हो 

मेरे तट पर

कितना  

अच्छा लगता है मुझको 

जब तुम करते हो 

बेशुमार अठखेलियां

मेरी लहरों के संग 

हर लहर हो जाती है बेताब

तुम्हें छूने को 


छेड़कर मुझको तुम 

साफ निकल जाते हो 

फिर मस्ती में बौराकर

उतरते हो मुझमें 

लगाते है गोते 

तब डर लगता है मुझको 


इसलिए कि तुम 

कितने छोटे लगते हो 

नन्हें प्यारे मासूम 

जब कहते हो तुम

मुझको गंगा मैया 

जी करता है 


तुमको भर लूं अंक में 

हर लहर आती है तुम तक 

नहलाती है तुमको बड़े प्यार से 

जब आकंठ समाते हो मुझमें 

करते हो सूर्य नमस्कार 

सूर्य की सुनहरी किरणें 


छा जाती है मुझपर 

मैं ओढ़ लेती हूं सुनहरी चुनरिया

ओह ओ लाल मेरे 

क्या बताऊं 

कैसे बताऊं तुमको 

मैं हाले दिल अपना 

बड़े संकट में हूं 


सच बताऊं तुमको 

वैसे तो दिन भर

जाने कितने आते रहते हैं 

करते हैं कर्मकांड - पूजा पाठ

और करते हैं जाने क्या क्या

फैलाते हैं कचरा 


आस-पास के प्रांगण में 

और मेरे तट पर 

देखकर गंदगी मैं होती हूं शर्मिंदा 

बस यूं ही कहते रहते हैं लोग 

गंगा मैया गंगा मैया


लेकिन  

कदर नहीं करते मैया की 

बस यही दुख है मुझको 

काश सब होते तेरे जैसे !

रखते ख्याल पर्यावरण का !

हो जाती मैं निहाल !


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