सब अपनापन को पहचानें...
सब अपनापन को पहचानें...
अत्यंत खास हुआ करती
है अपनेपन की तासीर
इसकी बदौलत मजबूत
होती है रिश्तों की प्राचीर
दूजों में जो भी जगा सका
सतत अपनापन का भाव
उसे कदापि चेहरा दिखाते
नहीं किसी समय अभाव
अहसासों का सही समय
पर जो भी कर ले पहचान
जीवन की सभी समस्याओं
का उसके करों से हो निदान
चारों लोक के जीव जंगम
सब अपनापन को पहचानें
प्रीति के हर हाव भाव पर
लगते वो जब तब हर्षाने
सुर. नर. किन्नर.ऋषि. मुनि
सबको अपनापन की चाह
जहाँ प्रबल दिखे प्रीति घन
वहीं इन सबका हो ठहराव!