सौदेबाज़ी
सौदेबाज़ी
कुछ मरोड़ कर बचपन ने ख्वाहिशें यूँ जेब में रख ली कि जब बड़े होंगे तो निकाल लेंगे,
मगर तज़ुर्बा ये हुआ कुछ उम्रदराज़ हो कर कि ये ज़िन्दगी भी गज़ब सौदेबाज है,
रोज़ की आपा धापी में जाने कहां रुखसत हुआ ये वक़्त ज़रा पता भी ना चला,
जेब टटोल कर देखी तो बस चंद टुकड़े ही बचे पाए उन बचपन की ख़्वाहिशों के।
सपनों से जहां नहीं बनता ये सच है, मगर उन के बिना कहाँ ही इस जहां का वज़ूद है,
मासूमियत कुछ यूं ग़ुलाम हो गई इस उम्र की, तज़ुर्बा दे कर वो बचपन छीन लिया,
बैठे थे तसव्वुर में सुकून से ना जाने क्यों ही तूफान भरे समंदर में खींच लिया,
बड़ा सौदा किया इस वक़्त ने उस मासूम से कि तस्सली छीन कर उसे आज़ाद किया।
कुछ मरोड़ कर बचपन ने ख्वाहिशें यूँ जेब मे रख ली कि जब बड़े होंगे तो निकाल लेंगे,
मगर क्या करे ये ज़िन्दगी ही कुछ सौदेबाज निकली।।