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Vikramsingh Chouhan

Abstract

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Vikramsingh Chouhan

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साया

साया

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जिसका नही है कोई जमीं पर, साया बनकर आता है

काहे ढूंढे इधर-उधर तुम, साईं दिल में रहता है

फ़िर क्यूँ जायें मंदिर मस्ज़िद,साई तो घर में ही रहता है

माता पिता की सेवा करना, उनमे साईं रहता है।।

भला अगर तुम करना सको तो, बूरा किसी का मत करना                 

पोछ सके ना आँसू उनके, और ना उनको तड़पाना

अँधियारों के इस नगरी में, बनके दिप वो जलता है

काहे ढूंढे इधर-उधर तुम, साईं दिल में रहता है ।।

सच कहना तो मुश्किल है, पर झूठ कभी तुम ना कहना

रिशतों के इस बुनियादों में और दरारें मत करना

हर इन्सान की आँखों में वो प्यार कि ज्योत जलाता है

काहे ढूंढें इधर-उधर तुम, साईं दिल में रहता है।।

मझधारों के इस कश्ती को साहिल से मिलवाना है

मंज़िल अपने पास है बंदे, साईं नाम को जपना है

सत्कर्मो के इन राहों पर हर दम साथ निभाता है

काहे ढूंढें इधार-उधर तुम साईं दिल में रहेता है।।


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