साँझ
साँझ
मन में हिलोर उठाती साँझ
दीप आशा के जलाती साँझ।
देख नभ में तारों की बारात
कुमुदिनी करती सिंगार रात
मंत्रमुग्ध सी निहारती साँझ
मन में हिलोर उठाती साँझ।
बज उठीं घंटियाँ मंदिर की
उड चले विहँग दिशा नीड़ की
शुभ्र चाँदनी ओढ़े उतरती साँझ
मन में हिलोर उठाती साँझ।
माँ की रसोई महकती भोजन से
कान्हा को जिमाती अनुनय मन से
तृप्त हो छककर मुस्कुराती साँझ
मन में हिलोर उठाती साँझ।
नीरव तटिनी के पास बैठकर
आतप मन को जल में डुबोकर
जाने किसकी राह तकती साँझ
मन में हिलोर उठाती साँझ।
दीप आशा के जलाती साँझ ।