गज़लें
गज़लें
भूख से कोई मरा है ये ख़बर अच्छी नहीं
फिर कहीं फ़ाका हुआ है ये ख़बर अच्छी नहीं
जल रहा है घर कहीं इन्सान सड़कों पर मरा
शह्र में कर्फ्यू लगा है ये ख़बर अच्छी नहीं
धीरे-धीरे तीरगी होने लगी है अब जवां
दीप आँधी में घिरा है ये ख़बर अच्छी नहीं
मेरे घर से उसके घर तक जो बना है रास्ता
एक दरिया आग का है ये ख़बर अच्छी नहीं
आप अपने शब्दबाणों पर ज़रा अंकुश रखें
"नेह" ज़ख़्मी सा पड़ा है ये ख़बर अच्छी नहीं
जब तुम्हें जल्वा दिखाना आ गया
हमको भी ये दिल लुटाना आ गया
आदमी से डर रहा है आदमी
देखिए कैसा ज़माना आ गया
अब कहाँ मासूमियत बाक़ी बची
आपको बातें बनाना आ गया
जिस तरफ़ भी हम निकलते हैं कभी
लोग कहते हैं दीवाना आ गया
पार होगी ये अदावत की नदी
"नेह" की कश्ती चलाना आ गया
मैं न जानू वफ़ा- जफ़ा क्या है
सिर्फ़ रोने के अब रखा क्या है
आदमी जीता है न मरता है
इश्क़ का यार फ़लसफ़ा क्या है
मेरी आँखों में देख लो चेहरा
इनके आगे वो आईना क्या है
रोग पाला है इश्क़ का यूँ ही
जब न हो दर्द तो मजा क्या है।
जल रही है कपास गीली-सी
तेरी यादों में अब बचा क्या है
कोई अपना कभी नहीं रहता
मेरी क़िस्मत में ये लिखा क्या है।
नेह मिलता हो जिस पे चलकर ही
हम न समझे वो रास्ता क्या है।
मुझको रोज़ रुलाने वाले
क्या हासिल तड़पाने वाले।
अपना चेहरा देख कभी तो
यूँ इल्जाम लगाने वाले।
बादल बनकर आज बरस जा
यादों में छा जाने वाले
पूरी कर दे बात कभी तो
सपनों में बहलाने वाले।
भूल उन्हें जा नेह यहाँ तू
कब दिल को हरसाने वाले।।