साहब
साहब
साहब, उसके माथे का सिंदूर उजड़ गया है
जिसके हाथों की मेहंदी नही सूखी है साहब
खांसी होने पे बच्चे की नजर उतार लेती थी
उस मां की गोद, हो गयी अब सूनी है साहब
जिस पिता कि आंखों में अनुशासन देखा था
देखो न, आज वो आंखे भी रो रही है साहब
वो नन्ही सी चिड़िया जब बड़ी हो जायेगी तो
कौन बताएगा, के उसके पिता नही है साहब
वो अब भला कैसे करे गुजारा, इस जीवन का
जिसकी इकलौती लाठी भी टूट गयी है साहब
हौसला तो ऐसा है, के एक बेटा अमर हुआ है
उसके घरवालों ने कहा है, दूसरा भी है साहब
इस दफा कदम बढ़ाया है, आतंक के खिलाफ
तो फिर पीछे न हो, अब यही विनती है साहब