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Himanshu Singh

Romance

3  

Himanshu Singh

Romance

साड़ी

साड़ी

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साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम?

पहना करो, अच्छी लगती हो

सूखे पत्तों के बीच,

गुलाब की पंखुड़ी लगती हो


शायद तुम्हें पता नहीं

नज़रें बहुत सी तुम पर रहती हैं

लेकिन उत्सवों में तुम

आंखों का नूर बन उभरती हो


देखने को नजारे और भी हैं

दिल बहलाने के लिए फसाने और भी हैं

मगर तुम्हारे शबाब जैसा

आफ़रीन पूरे कायनात में नहीं


साड़ी के पल्लू को संभालती

मेरे ख़्वाबों की बेचैनी लगती हो

साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम?

पहना करो, अच्छी लगती हो



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