रंगरेज
रंगरेज
एक धागे के नस-नस में रस जीवन का घोलता,
वो रंगरेज गज़ब का था
बदरंग चादरों से घिरा है क्यों,
क्षण भर न सोचता,
उसकी आँखों में दिखता तेज़ गज़ब का था
वो रंगरेज गज़ब का था!
चंद रोज़ में मुलाकात बनी,
उससे होकर जाने वाली रात बनी,
सांकल में किवाड़ की,
रंगीन सपने टांग के सोता गया।
रात भर कमरे के भीतर-भीतर,
अंधेरों को खाली करता गया,
आसमान के जैसे ही वो,
अमावस का तिलस्म पीता गया।
सुबह की लाली सा रौशन,
उसका सेज गज़ब का था
वो रंगरेज गज़ब का था!