रक्षक बनो भक्षक नही
रक्षक बनो भक्षक नही
कुछ पैसों की खातिर,
इंसान बना अपराधी है,
लोगों की संख्या ज्यादा है,
जीवों क्या आधी है,
हे मानव रक्षक बनो, भक्षक नही।
वो मूक परिंदे कैसे हैं,
किसी को नहीं इसकी चिंता है,
खुद तो महलों में रहते हैं ,
वो समुंद्र में भी सहते हैं,
हे मानव रक्षक बनो, भक्षक नहीं।
मेरा मेरा करके न जाने क्यों जलते हैं,
हम से अच्छे तो यह पक्षी हैं,
निशब्द रहकर बहुत कुछ कहते हैं,
जीवन इनका जीवन है,
इंसान तो बस यूं ही मरते हैं।
हे मानव रक्षक बनो, भक्षक नहीं।
संभल जाओ वरना कहर होगा,
ईश्वर का नहीं रहम होगा,
आज तुम जीवो को खाते हो,
कल इंसा इंसा को खाएगा,
कुछ ऐसा भी वक्त आएगा,
हे मानव रक्षक बनो, भक्षक नहीं।
कोरोना ने भी समझाया है,
जिसने शाकाहारी अपनाया है,
अच्छा स्वास्थ्य पाया है,
और जीवन सफल बनाया है।
हे मानव रक्षक बनो, भक्षक नहीं।