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Deepika Dakha

Abstract

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Deepika Dakha

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रिश्तों का सच

रिश्तों का सच

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किसी का जीवन रिश्तों के बिना अधूरा है, 

तो किसी को इनकी जरुरत ही नहीं, 

पल भर में तोड़ जाते हैं कच्चे धागों की तरह, 

फिर से इन्हें जोड़ने की जैसे फुरसत ही नहीं। 


हमने सीखी हैं बचपन से यही सारी बातें, 

कितने अनमोल हैं जीवन में यें रिश्ते नाते। 

जो सम्मान करे इनका ये वहीं पर टिकते हैं, 

ये सामान नहीं जो किसी बाजार में बिकते हैं। 


सहेजना रिश्तों को हर कोई नहीं जानता, 

नासमझ है वो जो रिश्तों को कुछ नहीं मानता। 

रिश्ते वही साथ देते हैं जो दिल से बनते हैं, 

मुँह बोले रिश्तो का सच हर कोई नहीं जानता। 


कमियों से किसी की कभी रिश्ता ख़त्म नहीं होता, 

झुकना जिसको आता है वह अपनों को नहीं खोता।

रिश्ते कुछ खून के और कुछ विश्वास के होते हैं, 

देते हैं दर्द पराये और मरहम किसी खास के होते हैं।



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