रिमझिम बरसे काली घटा
रिमझिम बरसे काली घटा
रिमझिम बरसे काली घटा
और मन थोड़ा सा घबड़ाए
अब तो बीच फंसी राह में मैं
अपने घर पर कैसे जाऊँगी
आसमां में छायी काली घटा
थमने का कहीं नाम नहीं है
और जो यहाँ पर बैठी रही
धीरे धीरे दिन ढलता जाए
कब से अब तो राह देखती
घर जाने को आतुर हुयी मैं
जिस पल अपने घर पहुंचूँ
तभी चैन की सांस थमेगी
वहाँ भी सब व्याकुल होकर
राह देखते होंगे अब तो मेरी
और ये काली घटा घेर रही
चहुँ ओर आसमान में छाए
सूरज की किरणें भी अब तो
लुका छिपी का खेल दिखाएं
ऐसे में मन शंका से भरा है
अंधेरों से घबराता है थोड़ा
घर पहुंच कर निर्द्वंद्व सी
माँ के आंचल में छुप जाऊँ
बारिश की बूंदों संग छाए
काले मेघों से मन घबराए
आशा की एक दीप जलाकर
इन अंधेरों को पार कर पाऊँ
अंधेरों में मां बनी प्रकाश पुंज
हर अंधियारे को मिटा जाए।
