"री सखी"
"री सखी"
समय से गुजारिश की है
जरा मध्यम मध्यम चलना
मेरी अज़ीज़ संग है आज
पवन तू शोर न करना
वक़्त गुजर गया
जमाना बीत गया
पर हम दोनों पर कहां
कहो किसका जोर चला
देखो रिश्ता फिर से
वहीं पर आकर थम गया
मिलने की दुआ करती रही
सखी सपनों में भी
तुझको मैं चाहती रही
दुनिया मेरी सजती रही
तू भी वहां जमाने संग
आगे बढ़ती रही
फिर देखो आज सितारों ने
हमको मिला दिया है
गुजरे हुए वक़्त को समेटने को
करीब ला दिया है
अब बैठकर मेरी सुनो
बस आज सखी
तुम कुछ भी ना कहो
कल तुम्हारी बारी होगी
तब मेरी पूरी कहानी होगी
देखो तुम अपनी सूरत
साथ लिए फिर रही हो
ये मेरे भी आईने हैं
सच बताना वो बचपन के पल
अभी भी कहाँ भूले हैं
चलो आओ उसको
अब धन्यवाद करते हैं
अपनी अपनी कहानियों का
सिलसिला हम
यों ही जारी रखते हैं।

