फुर फुरैया
फुर फुरैया
जा !
जाकर !
उसके मुंडेर पर बैठ जाना
जो बीता है साथ मेरे रात भर
तू उनको सुना देना,
पर सुनो!
वो सोई होंगी!
शायद रात को देर से
तो जरा इंतजार करना
देख फ़ुरैया तू उन्हें
कच्ची नींद से ना जगा देना,
चिलमन!
खुलेगा तो!
दीदार तुम ही पहला करना
मेरे होने का अहसास
उन तक अपनी सुरीली
चह चहाहट से पहुंचा देना,
ठहराना!
वहीं पर!
उनको उगता सूरज
देखना पसंद बहुत है
तुम्हें भी तो वही बेला
खूब लुभाती है,
पर देखो!
तुम अपना!
आपा जरा भी ना खोना
धीरे से उनके
खुले बालों के भीतर
छिपे कानों तक पहुंचना
तब मेरा संदेशा भी
तुम उनको सुना देना,
तुम्हारा तो!
संसार ही!
देखो कितना फैला है
बन्धन कोई नहीं तुम पर
हर साल पर ही
तुम्हारा अपना बसेरा है,
अच्छा सुनो!
जरा हमें भी तो!
तुम कभी बताओ ना
कैसा होता है तुम्हारा
सफर उड़ान का
यह बतलाओ ना
तुम तिनका एक एक लेकर
घरौंदा अपना बनाती हो
पर कहीं ऐसा तो नहीं
कि तुम हर तिनके से
बातें अपनी करती हो,
इतना ही तो!
मेरा उस से कहना था
वो फिर से फुर्र हो गई
दूर पेड़ पर जाकर
खलिहानों का रुख कर गई
अब देखता है
आसमान भी उसे गौर से
वो लौट आती है धरा पर
कुछ देर उसे लजाकर,
वो फिर फुर्र हो जाती है
हमें एक आस सी
फिर से अपने लौटने का देकर
वो बोलती है कहानियां सारी
हम सभी की दास्तां सुनकर।
