पथिक हैं
पथिक हैं
यह गगन के नीचे
इस धरा पर
अनगिनत पथ पर
ना जाने कितने राही हैं
खोज में अपनी डगर के
कुछ खोए हैं , कुछ भटके हैं ।
कुछ स्वप्न से ललचाए हैं
कुछ मजबूर हैं सताए हैं
क्षण क्षण मील के पत्थर हैं
और बीच में संघर्ष की खाई हैं
कुछ लांध रहे हैं ,
कुछ कूद रहे हैं
पथिक हैं ,
कुछ थक रहे हैं ,
कुछ चल रहे हैं ।