मैं सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ
मैं सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ
मैं सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ
फिर सोचता हूँ कि क्यों सोचता हूँ ?
फिर ख़याल आता है कि कुछ अच्छा सोचूँ
तो फिर मैं तुम्हें सोचता हूँ।
तुम्हें सोचता हूँ तो ख़याल आता हैं
दरमियाँ दूरी का एहसास आता हैं।
फिर मै सोच में डूब जाता हूँ
तिनका भी ना मैं पास पाता हूँ।
लम्हो को मैं ज़ाया करके
खुदकों भरम पिलाया करके।
सब भूलना चाहता हूँ मैं
यादों से तेरी किनारा करके।
यादों से मौन जब होता हूँ
मैं भीतर अपने रोता हूँ ।
कानो कान खबर न पड़ती
मैं वैसे चीखता चिल्लाता हूँ।
कोई ना आता हाल पूछने
मैं खुदको ही सहलाता हूँ
कुछ अनजाने लोग ढूंढ़ कर
मैं उनमें घुल मिल जाता हैं
वो लोग भी मुझको रास ना आते
औकात से अपनी बाज ना आते
ए ज़िन्दगी अच्छा होता अगर
तेरे मेरे बीच ये शायद काश ना आते
मैं सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ
फिर सोचता हूँ कि क्यों सोचता हूँ।