प्रखरप्रज्ञा साधना के गीत
प्रखरप्रज्ञा साधना के गीत
प्रखरप्रज्ञा साधना के गीत।
हैं हमारी कामना के गीत।।
कह रहीं मुझसे दिशायें हैं।
आज ये बदली हवायें हैं।
मन्त्र जैसे गूंजती ध्वनि है।
वेद की जैसे ऋचायें हैं।
सृष्टि की आराधना के गीत।।
आ रहे वो आंधिया लेकर।
हम चले हैं कश्तियाँ लेकर।
पर पाये वो भला कैसे।
जो खड़ा बैसाखियाँ लेकर।
ये नहीं हैं याचना के गीत।।
कर्म के माथे जड़ा मोती।
भाग्य की मधुमालती सोती।
कल्पनायें सर्जना बनकर।
वेदनायें ही रहीं बोती।
उग उठे हैं वेदना के गीत।।
सघन श्रद्धा मन संजोये है।
सजल होकर तन भिगोये है।
हृदय स्पंदन किया करता।
सांस के धागे पिरोये है।
भक्तिभीनी भावना के गीत।।
