प्रीति की रीति
प्रीति की रीति
ओ प्यारे कृष्ण कन्हाई
क्यों इतना तरसाते हो,
बार-बार यूं दर्श दिखाकर,
फिर जाने कहां छिप जाते हो।
अबकी बार जो आए प्रियतम,
नैनों में छिपा लूंगी,
खोजेगी फिर राधा प्यारी,
फिर भी मैं न पता दूंगी।
जो वादा करो तुम यूं मिलने का,
प्रीति की रीति निभाने का,
बनकर तेरे चरणों की दासी,
सारी उम्र बिता दूंगी।
गोप गोपियां करें वंदना,
मैं तो सिर्फ अरदास करूं,
जपूं तुम्हारे नाम की माला,
तेरा ही बस ध्यान धरूं।
रहूं चाहे जिस हाल में मैं,
तुम हरदम साथ निभाओगे,
बस एक ये ही तुम वादा कर दो,
प्रीति की रीति निभाओगे।