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Anjali Sharma

Abstract

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Anjali Sharma

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प्रेमपाश

प्रेमपाश

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प्रेम पाश ऐसा है सागर

जिसमे डूबा है संसार


देर सवेर धर ही लेता है

नीरस को भी ये बुखार


पहले बस एक झलक में

हो जाता था प्यार


बाकी जीवन बीतता था

पूरे करते लोक व्यवहार


नया ज़माना बदल गया

प्रेम रोग का रूप


यंत्रों से ही होते पूरे

प्रेम के सब दस्तूर


न कोई टीस न बिछोह का दुख

हर पल संपर्क है कायम


न खाते जीने मरने की कसमें

नए युग के नए हैं नियम


एक नहीं तो दूजी ही सही

न बनता कोई देवदास


नहीं निभाता साथ कोई अब

नहीं वचन जन्मों के सात


तेज़ गति का युग रे भैया

अपनी शर्तें चाहे वर कन्या


संभल देख परख कर थामें

एक दूजे का हाथ


नहीं चलती अब रस्में पुरानी

बिन फेरों का अनोखा साथ


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