प्रेमगीत...
प्रेमगीत...
तुम सुकून-ए-दिल की हर वह चीज़ हो!
तुम गीत हो - संगीत हो!
तुम प्रीत हो - प्रेमगीत हो!
तुम मीत हो - मनमीत हो!
तुम दीप हो - संदीप हो!
तुम सुकून-ए-दिल की हर वह चीज़ हो!
तुम आहना हो मेरी,
तुम अर्चना हो मेरी,
सामने आती नहीं मगर,
तुम आईना हो मेरी!
महकते बाघों में बहार आती है!
रेशमी हवाों में खुमार आती है!
शर्मा के तुम जब मुस्काती हो,
चाँद से चेहरे पर निखार आती है!
ख्यालों की मंदिर में मेरे,
तुम्हारा जो रूप है,
मासूम सी, इठलाती हुई,
देवी माँ का स्वरुप है!
तुम कल्पना हो मेरी!
तुम अप्सरा हो मेरी!
सुनाई देती नहीं मगर,
तुम तराना हो मेरी!
सपनों के आँगन में मेरे,
रोज़ जो तुम आती रहती हो!
दीवाने दिल के ताक में मेरे,
शमा हर वक़्त जलाती हो!
तुम दिन रात हो मेरी,
तुम हर बात हो मेरी,
कहता तो मैं नहीं मगर,
तुम कायनात हो मेरी!
जलते दिये तुम्हारी याद लाती है,
ठंडी हवाएं तुम्हारी दाद जाती है,
रंगीन तितली सी जब तुम इतराती हो,
गर्वीले महोर की नाद आती है!
तुम वंदना हो मेरी,
तुम आराधना हो मेरी,
दिखाई देती नहीं मगर
तुम खज़ाना हो मेरी!
तुम सुकून-ए-दिल की हर वह चीज़ हो!
तुम गीत हो - संगीत हो!
तुम प्रीत हो - प्रेमगीत हो!
तुम मीत हो - मनमीत हो!
तुम दीप हो - संदीप हो!
तुम सुकून-ए-दिल की हर वह चीज़ हो!

