प्रारब्ध
प्रारब्ध
मुझ को बस किताबें मिलीं
खुद की ही गोद में पलता रहा हूँ
उँगली पकड़ खुद की चलता रहा मैं
खुद को ही पढ़ाता पढ़ता रहा मैं
खुद को पढ़कर समझता रहा मैं
खुद में उलझ कर सुलझता रहा मैं
खुद को घटाकर बढ़ता रहा मैं
खुद की सीढ़ियां उतरता चढ़ता रहा मैं
दुनिया की भीड़ में चेहरों पर हिजाबें मिलीं
तुम्हारे हिस्से में कई रहनुमा आये
मुझ को बस किताबें मिली
