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पर मै लौट कर ना आऊँ ।।

पर मै लौट कर ना आऊँ ।।

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मेरा खून इतना ठंडा था कि,

आंसुओं की दो बूंद से खोलना 

बंद कर देता था। 


पागलपन मैं कुछ कर जाती

तो अच्छा होता,

नासमझ समझ के

जमाना माफ़ कर देता था।


अब ना हिम्मत है ना ताकत,

तब दिल कुछ उम्मीद

तो जगा देता था।


खून एक बार फिर से खोला है

पर डर है इसलिए ,

आसुँओं को ना बहना इस बार,

बोला है।


सोचा है एक आखरी

कोशिश करने की,

दिल से दिल को

राहत दिलाने की। 


सोचा है कुछ कर जाऊँ

अब जिऊँ या मर जाऊँ

जो भी हो अब मेरा आगे 

पर मैं लौट कर ना आऊँ।


या तो मुझपे लगे इल्जाम हटाऊं

या फिर में मिटटी मैं मिल जाऊँ

पर मैं लौट कर ना आऊँ।


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