पंछी आकाश में, हम घर में
पंछी आकाश में, हम घर में
आज़कल ये उड़ते पंछी तो आज़ाद है
हम इंसान घरों में ही कैद एक बाज है
हमने किया था जुल्म इन बेजुबानों पर,
ये कोरोना ख़ुदा के कहर की आवाज है
अब करो दुआ सिर्फ उस पर्वरदिगार से,
उसके रहम से होंगे कोरोना से आज़ाद है
अब अपने गुनाहों से हम कर लेंगे तौबा,
अब न करेंगे प्रकृति से छेड़छाड़ का सौदा,
वो दयालू है, वो दीनानाथ है,हम सबका
उसकी इबादत से फिऱ है होंगे आबाद है।
