पल-पल अब तक घुटती आयी
पल-पल अब तक घुटती आयी
पल-पल अब तक घुटती आयी,
बस तलवार उठाओ तुम।
प्रत्याशा अब नहीं किसी से,
खुद इतिहास बनाओ तुम।
माली चमन लूटते आये।
अपने ही गम देते आये।
मत देना अब अग्निपरीक्षा
अपनी राह सजाओ तुम।
बड़ी वासना आज चरम है
मानव का अब नहीं धर्म है।
नर से दानव बन बैठा जो-
जिंदा उसे जलाओ तुम।
जीवन की ये काली रातें।
रामराज्य वाली वो बातें।
हर बार कहीं फिर जाएंगी-
बातों में मत आओ तुम।
बस उससे प्रत्याशा की थी।
थोड़ी सी अभिलाषा की थी ।
राम-कृष्ण अब नहीं जगत में -
रणचंडी बन जाओ तुम ।
तुमको काया देने वाली ।
तेरे दुख हर लेने वाली ।
सरेआम नीलाम हो रही
बोली नहीं लगाओ तुम।
