आओ आज समर्पण कर दो
आओ आज समर्पण कर दो
तन औ' मन को निर्मल कर दो
आओ आज समर्पण कर दो
साँसों को अब मिल जाने दो
मन - भावों को खिल जाने दो
सागर से गहरे भावों में-
अपने मन का तर्पण कर दो
अधर नहीं जो कुछ कह पाए
व्यथा बहुत ही सहते आए
तोड़ो आज लाज के बंधन-
बस तुम खुद का अर्पण कर दो
प्रणय गीत निशदिन तुम गाओ
जीवन का कुछ तो सुख पाओ
नयनों से नयना मिल जाएँ
मन को अपने दर्पण कर दो।