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तृप्ति अग्निहोत्री

Abstract

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तृप्ति अग्निहोत्री

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आओ आज समर्पण कर दो

आओ आज समर्पण कर दो

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तन औ' मन को निर्मल कर दो

आओ आज समर्पण कर दो


साँसों को अब मिल जाने दो

मन - भावों को खिल जाने दो

सागर से गहरे भावों में-

अपने मन का तर्पण कर दो


अधर नहीं जो कुछ कह पाए

व्यथा बहुत ही सहते आए

तोड़ो आज लाज के बंधन-

बस तुम खुद का अर्पण कर दो


प्रणय गीत निशदिन तुम गाओ

जीवन का कुछ तो सुख पाओ

नयनों से नयना मिल जाएँ

मन को अपने दर्पण कर दो।      


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