फुर्सत
फुर्सत
कई अरमान दिल ही दिल मे रह जाते है
बस ज़रूरत है एक फुर्सत की, जो मील जाए
तो हर अरमान पूरा हो जाये।
मिले जो फुर्सत तो चाहु आज मै जीना।
रोज़ की तरह शाम को थका हारा घर जब लौटा,
ज़िंदगी का एक और लम्हा भाग-दौड़ मे बिता।
हर गुज़रते हुए कल से सिख कर आगे है बढ़ना
मिले जो फुर्सत तो चाहु आज मै जीना।
याद नहीं कभ देखा था उघता सूरज,
यहाँ तो घड़ी की नोक पर सवेरा होता है।
मशीनो के इस युग मै बन बैठा है आदमी खिलौना
मिले जो फुर्सत तो चाहु फिर इंसान बनना।
पडी नज़र आईने पर एक दिन मेरी,
वो भी हस कर बोला, बरसो बाद देखि सूरत तेरी।
भूल बैठा था मै सासे लेना
मिले जो फुर्सत तो चहु अपने दिल की धड़कन सुनना।
ठोकरे खा कर गिरता हु, उठ कर फिर आगे चल देता हु
क्या एक ही मकसद है, आगे है बढ़ना
मिले जो फुर्सत तो चहु अपने आप को ढूंढ़ना।
देख कर खिड़की के बाहर कुछ बच्चो पर नज़र मेरी पड़ी,
छोटी सी मुस्कान मेरे भी चेहरे पर आन पड़ी।
ऐहसास हुआ उन् बच्चो को देख कर,
क्या होता है ज़िंदगी जीना
मिले जो फुर्सत तो चहु फिर एक बार बच्पन जीना।
अंत मै बस यहीं कहना चाहु
भूतकाल बीत गाय, छोड़ चिंता उसकी,
भविष्या संभव नहीं तेरे हाथ मै आना
खोल जकड़ी मुट्ठी, इससे पहले फिसले हाथो से रेत तेरी
सिख जा तू भी वर्तमान मै जीना
मिले जो फुर्सत तो चाहु आज मै जीना।