STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

फोटो पर हार

फोटो पर हार

1 min
15


यह कैसी विडंबना है 
जिसे हम आप स्वीकार नहीं करते 
या यूँ कहें, करना ही नहीं चाहते।
क्योंकि हमें तो आदत है 
सच को दूर ढकेलने की
अपने स्वार्थ सुविधा और दंभ में खेलने की।
पर क्या इतने भर से सच बदल जायेगा?
जो वास्तव में होना निश्चित है 
वह इतने भर से लुप्तप्राय हो जायेगा?
ऐसा सोचिए भी मत, दिवास्वप्न देखिए मत
भ्रम से बाहर निकलिए और विचार कीजिए 
सत्य की सत्यता को ईमानदारी से स्वीकार कीजिए।
आज चाहे जितना उछल कूद कर लीजिए,
धन-दौलत, सुख-सुविधाओं का घमंड कर लीजिए,
मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा का ढिंढोरा पीट लीजिए 
या जो मन में आये, वो सब भी कर लीजिए।
पर यह सच स्वीकारने का साहस भी कीजिए 
कि कल तो फोटो पर हार चढ़ना ही है,
हमारा अस्तित्व तो मिटना ही है,
फिर कोई अपना पराया नहीं होगा,
कोई हमारा नाम भी नहीं लेगा।
सब हमको चंद दिनों में भूल जायेंगे 
और हम सबके लिए इतिहास बन जायेंगे
हमेशा के लिए अस्तित्व विहीन हो जायेंगे,
फोटो में दीवार पर लटके रहे जायेंगे 
यदा-कदा औपचारिकताओं के पुष्प हार 
हमारे फोटो पर चढ़ाए जायेंगे,
और हम हों या आप कुछ भी नहीं कर पायेंगे
सिर्फ फोटो से एकटक देखते रह जायेंगे।

सुधीर श्रीवास्तव 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract