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Abhishek Singh

Abstract

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Abhishek Singh

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पहला ख़त

पहला ख़त

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हर ख़त ख़ास था।

हर संदेश ख़ास है।

जब भी आता था।

अब जब कभी आता है।

मेरे आमाशय का भूगोल,

तब भी विकृत कर जाता था।

आज भी विकृत कर जाता है।

किसी एक को ख़ास कह,

बाक़ियों को झुठला कैसे दूँ।


हर ख़त ख़ास था।

हर संदेश ख़ास है।

पर कहो कुछ भी यारों,

पहला प्यार,

पहला ख़त,

और पहला संदेश,

तब भी ख़ास था।

आज भी ख़ास है।

और जीवनपर्यंत ख़ास ही रहेगा।


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