" फिर लौट आना रे मेरे बचपन "
" फिर लौट आना रे मेरे बचपन "
"फिर लौट आना रे मेरे बचपन ....
जहाँ थोडी-सी चीजों मेंढूंढ लेते थे अनमोल खजाना,
बड़ा मुश्किल है जीवन में वो पल वापस ला पाना ।
जहाँ ना होता था कोई जाति धर्म,भेद-भाव,
लड़ते-झगड़ते फिर लगते खेलने भूलकर हर घाव।
जहाँ सुबह-शाम कान होता कोई ठिकाना,
मन हो जाता रंग बिरंगी तितलियों का दीवाना ।
जहाँ टोलियों मेंम चाया करते थे हूडदंग,
होड़-सी मचती थी जीत रहे हो जैसे जंग।
जहाँ लगोरी मे होती थी जाने कितनी मस्ती,
गिल्ली-डंडे मे थी सबकी अपनी एक अलग हस्ती।
जहाँ नंगे पैर ही भागते फिरते थे गली-गली,
चाहे अनचाहे डांट सुनते बुजुर्गों की बुरी-भली।
जहाँ मस्ती और अठखेलियां होती थी बड़ी,
माँ प्यार से खड़ी हो जाती थी लेकर छड़ी।
जहाँ पहली ही बारिश मेंभीग जाता था तन-बदन
फिर लौट आना रे मेरे बचपन....।