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Ajay Yadav

Abstract

4.8  

Ajay Yadav

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" फिर लौट आना रे मेरे बचपन "

" फिर लौट आना रे मेरे बचपन "

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"फिर लौट आना रे मेरे बचपन ....

जहाँ थोडी-सी चीजों मेंढूंढ लेते थे अनमोल खजाना,

बड़ा मुश्किल है जीवन में वो पल वापस ला पाना ।

जहाँ ना होता था कोई जाति धर्म,भेद-भाव,

लड़ते-झगड़ते फिर लगते खेलने भूलकर हर घाव।

जहाँ सुबह-शाम कान होता कोई ठिकाना,

मन हो जाता रंग बिरंगी तितलियों का दीवाना ।

जहाँ टोलियों मेंम चाया करते थे हूडदंग,

होड़-सी मचती थी जीत रहे हो जैसे जंग।

जहाँ लगोरी मे होती थी जाने कितनी मस्ती,

गिल्ली-डंडे मे थी सबकी अपनी एक अलग हस्ती।

जहाँ नंगे पैर ही भागते फिरते थे गली-गली,

चाहे अनचाहे डांट सुनते बुजुर्गों की बुरी-भली।

जहाँ मस्ती और अठखेलियां होती थी बड़ी,

माँ प्यार से खड़ी हो जाती थी लेकर छड़ी।

जहाँ पहली ही बारिश मेंभीग जाता था तन-बदन 

फिर लौट आना रे मेरे बचपन....।



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