पाखंड
पाखंड
जो पूजा मंदिर में करते हैं
घर में लड़ाई लड़ते हैं
भगवान को जो पूजते हैं
बुजुगों को दुत्काराते हैं
दया ,धर्म ,परोपकार करते हैं
अपनों को ही छलते हैं
दान,पुण्य,खाना खिलाते हैं
बड़ों को खाने के लिए तरसाते हैं
प्रभु को भोग छप्पन लगाते हैं
पूजा पाठ से प्रभु को मनाते हैं
जो गरीब सड़क पर सोते हैं
उनको खाना तक नहीं खिलाते हैं
कैसा फैला पाखण्ड सब ओर हैं
रात रात भर जाग कर देवी को मनाते हैं
दोगले रूप यह इंसान दिखाते हैं
दिन भर सबको दौलत से डराते हैं
जो करते नित्य नये अधर्म का काम हैं
असलियत जान जाने पर पाखंडी कहलाते हैंं।