पागल कविता | राहुल कुमार |
पागल कविता | राहुल कुमार |
पागल कविता । राहुल कुमार।
साथ निभाने का वादा करके वो मुकर गयी,
बीच रास्ते में छोड़कर मुझको अजनबी कर गयी,
रात भर बाते करने वाली याद करना भूल गयी,
मुझे अकेला छोड़कर वो किसी कि संगिनी बन गयी,
एक लड़की थी पागल सी जो मुझको पागल कर गयी।
मुझे हँसाने वाली आज रुलाकर चल गयी,
मोहब्बत भरी दिल में जहर कर गयी,
वो बेवफा से अब क्या उम्मीद करना,
जो वफ़ा का वादा करके मुझे मरने के लिए छोड़ गयी,
एक लड़की थी पागल सी जो मुझको पागल कर गयी।
हाथ पकड़कर जो कभी साथ चला करती थी,
बीच राह में साथ छोड़कर मुझे अकेला कर गयी,
मेरे जीवन में जो कभी रोशनी भरा करती थी,
मुझसे रोशनी छीनकर अँधेरे में रहने को मजबूर कर गयी, एक लड़की थी पागल सी जो मुझको पागल कर गयी।
दुःखी है आज भी किसी और कि दुल्हन बनकर,
अब शिकायत भी क्या करना,
रोते-रोते अंतिम बार ही सही मोहब्बत का इजहार तो कर गयी,
एक लड़की थी पागल सी जो मुझको पागल कर गयी। एक लड़की थी पागल सी जो मुझको पागल कर गयी।।

