ओ चाँद सुनो न
ओ चाँद सुनो न
ओ चाँद सुनो न !
कब से है साथ..?
मेरा-तुम्हारा
कितने युगों से..?
न जानूँ मैं
लेकिन ये रात
सांवली-सलोनी सी,
सजती है
तो सिर्फ तुम्हीं से..
फ़िर भी तुम
जाने क्यों छोड़ मुझे
निकल पड़ते हो
अनजान राह पर,
कुछ दिन, कुछ पल,
रह जाती हूँ मैं
सूनी-अकेली
कौन है वो
जिसकी ख़ातिर
बना लेते हो
दूरियां अमावस से पहले ही
सदा से ही ऐसे हो...
या पड़ गया है
तुम पर असर
मानव का..
कहीं तुम भी तो
नहीं रहे हो छल
इस रजनी को,
युगों-युगों से
साथ तुम्हारे
चलती आई
उस सजनी को
ओ चाँद !
