नवगीत
नवगीत
जिंदगी के पंथ पर
विश्राम लेकर क्या करूंगी,
क्योंकि एक पल श्वांस का
रुकना मरण का समीकरण है।
हार तो बस हार का
प्रतीक मेरी दृष्टि में है
क्योंकि मंजिल तक पहुंचना
अस्मिता की मुट्ठी में है।
अस्मिता के हम विजेता
रेत में नावे चला दें,
क्योंकि हम मल्हार गाकर
जीत पाए सृष्टि में हैं।।
मापदंडों की विजय को तो
लेते हैं तर्क में हम,
क्योंकि जीवन- चक्र तो
अनुशासनो का अनुसरण है।
जिंदगी के पंथ पर विश्राम
लेकर क्या करूंगी ,
क्योंकि एक पल श्वांस रुकना
मरण का समीकरण है।।
बीत जाती आज सदियाँ
सभ्यता के वस्त्र बुनते
किंतु पछुवाई हवा में
उड़ गए हैं वस्त्र इतने।
नग्नता के पाश में
जीवन जगत बेकल हुआ है
सुरसुरा के रास्ते दृग
छलभरे पथ त्रस्त चुनते।।
मस्त जन उस प्रीत की
पावन तपन से दूर कोसों
जिस जगह पावन प्रीति
संवेदना का जागरण है।
जिंदगी के पंथ पर
विश्राम लेकर क्या करूंगी,
क्योंकि एक पल श्वांस का
रुकना मरण का समीकरण है।।
भोर की उजली किरण
और रात का गहरा अंधेरा,
दे रहे संकेत दोनों
पंथ में न कर बसेरा।
धुंधमय वातावरण
अवरोध चाहें लाख रोकें,
पर शपथ पगडंडी के
उसपार जाना बन सपेरा।।
क्योंकि बन करके सपेरा
बीन से पीड़ा हरोगे,
मात्र पीड़ा का हरण
भारतवर्ष का व्याकरण है।
जिंदगी के पंथ पर
विश्राम लेकर क्या करूंगी,
क्योंकि एक पल श्वांस का
रुकना मरण का समीकरण है।।
