निर्भया
निर्भया


एक वक़्त था जब तूने उसे जगाया था
वो रात घनघोर काली थी
जब तूने उसे रुलाया था
वो चिखती - चिल्लाती आवाज बन गयी
शब्द तो निकले नही
मगर आगाज़ बन गई
वो आगाज़ थी उस अंगारे की
जिसमे जलकर तू राख होने वाला है
ये सोच कर वो सो गयी
की तेरा सर्वनाश होने वाला है
मगर विडंबना है,
आज भी तू बेचता अपनी हया
आज भी हर घड़ी रो रही है निर्भया
आज भी हर घड़ी रो रही है निर्भया
तेरे कुकर्म का अंजाम है उस पे पड़ा
घर से ना निकल रही है डर के वो अप्सरा
जानती है वो की नीयत है तेरी बुरी
लाख कोशिश तू करेगा ले हाथ में कोई छुरी
चीखेगी- चिल्लाएगी तो मार तुम गिराओगे
फिर
रात के अंधेरे में आवाज तुम दबाओगे
वो फिर किसी वादियों में गुमनाम सी रह जाएगी
इंसाफ की लड़ाई में बदनाम सी रह जाएगी
मगर विडम्बना है
करता नहीं तू आज भी उसपर दया
आज भी हर घड़ी रो रही है निर्भया
आज भी हर घड़ी रो रही है निर्भया
ना उम्र का लिहाज है, मासूम वो जो ताज है
उस मासूमियत के ताज को धूल में मिला दिया
गिर जाने के बाद भी हौसला उड़ान की
उस उड़ाने वाले पंख को काट के गिरा दिया
देखते है सब यहाँ
ना कृष्ण कोई बन सका
ना बांसुरी की धुन पर
महाभारत कोई रच सका
कांपती है रूह उसकी, देख ये अपनी दशा
आज भी हर घड़ी रो रही है निर्भया
आज भी हर घड़ी रो रही है निर्भया