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Sharad Ranga

Abstract

5.0  

Sharad Ranga

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निराला समय

निराला समय

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जीना चाहूँ बचपन वापस,

लगे भूल गया था जीना जिसको,

समस्याएं नहीं थी जहां जरा भी,

मिलता था बस प्यार अपार।


सोचता हूँ वही था जीवन,

अब लगे सब यह माया जाल,

ना करो चिंतन तो चिंता कहाँ है,

करो मंथन तो विष भरा पड़ा है।


समझ से परे मेरे कुछ बातें,

लगे हर बात समस्या विशाल,

कहूँ किससे सारी यह बातें,

पर भगवान से कह डाली इक बार।


मिलेगा समाधान

आज नहीं तो कल ही सही,

करूँगा कर्म,

निभाउंगा धर्म,

विश्वास रूपी धागा है यह,

नहीं केवल कोई भ्रम।


आज तो तू मुँह फेरे मुझसे,

कल का कर तू भी इंतज़ार,

समय किसी की बपौती नहीं है,

हर पल विचरण इसका काम।


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