प्रश्न स्वयं से
प्रश्न स्वयं से
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यह मन में कैसा आया सवाल,
क्या कहूँ इसे,
ये उजाला है?
या फिर..
है कोई अंधकार ?
किससे करूँ मन की बात,
किस पर करूँ विश्वास,
लगे ऐसे...
कि जैसे सब बेकार।
पर सत्य तो यही है कि,
यह समय बड़ा बलवान।
इक तरफ
जहाँ सोचने को बहुत कुछ है,
दूजी तरफ
बताने को कुछ नहीं,
कैसी है यह विडंबना कि,
बातें इतनी सारी,
पर जताने को कुछ नहीं ।
हाँ ! लिख डाले कुछ और विचार,
पर
क्या पाया फिर से इस बार ?
यही सोचूँ अंत में,
समय के आगे झुक जा तू,
तू है तो इक इंसा,
तू है लाचार।
यह मन में कैसा आया सवाल,
क्या कहूँ इसे,
ये उजाला है?
या फिर
है कोई अंधकार ?
है कोई अंधकार।