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Rathna Nagaraj

Abstract

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Rathna Nagaraj

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निकलो

निकलो

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कोरोना कोरोना 

हम से तुमसे

धार है 


 जरा  सोचलो

आदमी भहर 

आना जाना  नहीं है

तुमसे भी दूर है 


सोनेका  दुकान  भी 

बांध   है

सुने वालो खान  भी

गूंगट से भंध  है


चावल सब्जी भि

भहुत मेंगा है

हाथों की काम नयी है

पैसे बे काली  है


दोसत और रिश्तेदार

मिलना बे  बांध   है

मगर मोबाइल  

वत्स आप व्यस्त है


मास्क और सेनेटरी   सलूशन  को

भहुत डिमांड है

पानी पुरी  बेहलपुरी

घर घर में मस्त मस्त है


अमीषा आपकी बाथ सुनकर

 तुमको देककर

 हम पागल होता है


कब जाएँगी आप

फिर से मैथ आना

मुझे मेरे लोगों को

मिलना है।


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