STORYMIRROR

Lalita Rautela

Inspirational

4.2  

Lalita Rautela

Inspirational

नहीं चाहती मैं

नहीं चाहती मैं

1 min
327


नहीं चाहती मैं बनना पुतला मोम का

जो पिघल जाती है चंद सांसों की गर्मी से।


नहीं चाहती मैं बनना पत्थर मंदिर का

जो छूकर देवी बन जाती है भक्तों की मर्जी से।


नहीं चाहती मैं बनना प्यार मुमताज का

जो ताज में दफन याद बन जाती है हमदर्दी से।


नहीं चाहती मैं बनना सलवट बिस्तर का

जो झाड़ दी जाती है कुटिल मुस्कान व बेशर्मी से।


नहीं चाहती मैं बनना फूल गुलाब का

जो मसल दिया जाता है चंद ठेकेदारों की बेगैरत से।


नहीं चाहती मैं बनना साज श्रृंगार लुभाने का

जो उतरकर आईने में मिला देता है हकीकत से।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational